कानपुर। क्या आप जानते हैं कि कानपुर शहर की सड़कें 19वीं सदी में भी लंदन की ब्रॉडवे जैसी दिखती थीं? कलेक्टर रोवर्ट मोंटगोमरी की 1848 की रिपोर्ट और 1857 की ‘द स्टोरी ऑफ कानपुर’ किताब के मुताबिक उस दौर में शहर में 42 मुख्य सड़कें थीं, जिनकी चौड़ाई 24 फीट हुआ करती थी। उस समय की सबसे चौड़ी और व्यस्त सड़क चांदनी चौक (आज का चौक बाजार) थी, जो हर वक्त व्यापारियों से गुलजार रहती थी। इसका फैलाव 300 गज लंबा और 42 फीट चौड़ा था।
W.H. Russell ने 18 अक्टूबर 1858 को ‘My Diary in India’ में लिखा कि “मुख्य सड़क देसी रोशनियों से रंगीन दिखती थी, दृश्य अत्यंत सुंदर और कोमल था। उस समय सड़कों पर फुटपाथ नहीं थे।”
1861 से लेकर म्यूनिसिपल बोर्ड के गठन तक
1861 में कानपुर सिविल स्टेशन में 18 मील सड़कें थीं।
1869-70 में हल्सी रोड बनी।
बाद में नगर पालिका के अधीन कुल 215 सड़कें रहीं जिनकी कुल लंबाई 120 मील थी।
1901: जब सड़कों को नया नक्शा मिला
3 अप्रैल 1901 को अपर इंडिया चैंबर ऑफ कॉमर्स के सचिव के पत्र के आधार पर शहर की सड़कों के विकास के लिए एक कमेटी बनी जिसमें म्यूनिसिपल बोर्ड के मिस्टर न्यूकमैन, नवाब सैफुल्ला खान, लाला कन्हैया लाल, बाबू सिद्धगोपाल मिश्रा और वॉल्टर पेरी शामिल थे। इस कमेटी ने 18 अगस्त, 30 अगस्त और 21 सितंबर 1901 को सर्वे और बैठकें कीं।
प्रस्तावित सड़कें:
AB रोड: डफरिन अस्पताल से टॉपखाना, विसाती बाजार, मछली बाजार, ठठेरी बाजार होते हुए मुलगंज तक।
CD रोड: खटिकाना से कतर्न मिल तक, जिसे 1905 में लैटस रोड नाम से शुरू किया गया।
EF रोड: रामनारायण बाजार, पतकापुर, फिरखाना, सिरकी मोहल्ला, वेलदारी मोहल्ला, चेस मोहल्ला, मोढ़ा ताल होते हुए रंजीतपुरवा, कलेक्टोरगंज से होते हुए हल्सी रोड तक।
AB रोड को 1909 में शुरू किया गया और जुलाई 1915 में इसका नाम ‘Meston Road’ रखा गया। इस पर कुल लागत ₹2.7 लाख आई थी, जिसमें सरकारी अनुदान मिलाकर कुल खर्च ₹3.31 लाख हुआ।